संस्कृत को देववाणी कहा गया है और वैज्ञानिक भी इसे कम्प्यूटर के लिहाज से सबसे सटीक भाषा मान चुके हैं। यह बात अलग है कि समय के साथ- साथ इसका प्रचलन भी कम हुआ और लोगों ने इसे पढ़ना भी बंद कर दिया है। हालांकि जो लोग इसे पढ़ने और लिखने में दिलचस्पी रखते हैं, उनका कहना है कि संस्कृत से बेहतर और सरल कोई दूसरी भाषा ही नहीं है।बावजूद इसके जहां आजकल लोग सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी जुबान को ही प्राथमिकता दे रहे हैं, वहीं एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग फर्राटे से संस्कृत बोलते हैं। हिंदू- मुस्लिम, बच्चे-बूढ़े सभी यहां संस्कृत में ही बात करते हैं।
मत्तूर नामक यह गांव हमारे देश के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में है। आम बोलचाल की भाषा है संस्कृत। गांव में संस्कृत ही मुख्य भाषा है। बताया जाता है कि 1980 से पहले यहां लोग कन्नड़ और अन्य स्थानीय भाषाएं बोलते थे। इसके बाद यहां संस्कृत भारती संस्था ‘ की स्थापना हुई और इस आंदोलन के तहत तय किया गया कि संस्कृत को यहां व्यवहार की भाषा माना जाए। इसके बाद संस्था ने मिलकर काम किया और पूर गांव ही संस्कृत में बात करने लगा। बच्चों को यहां बचपन से ही योग और वेद की शिक्षा दी जाती है और वे परम्परागत परिधान में रहते हैं। यहां दूसरे लोग भी संस्कृत सीखने के लिए आते हैं।जब यहां के लोग गांव में आने वालों से बात करते हैं तो संस्कृत में ‘कथम अस्ति पूछते हैं, यानी आ कैसे हैं? इसके अलावा अभिवादन के लिए भी संस्कृत का ही इस्तेमाल किया जाता है।
एक और गांव भी है ऐस कर्नाटक के मत्तूर के अलाव मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही संस्कृत बोलने वालों का गांव है। इसक नाम झिरी गांव है, जो राजग जिले में पड़ता है। यहां 15 साल पहले संस्कृत भारती से जुड़े हुए लोग आए और उन्होंने लोगों कं संस्कृत भाषा सिखाई ।यहां भी अभिवादन के लिए लोग ‘नमो नमः’ का इस्तेमाल करते हैं और सामान्य खेती-बाड़ी से लेकर बड़ी चर्चाएं भी संस्कृत में ही करते हैं। इन्हें बात करत देखकर लगता है कि हम वैदिक काल में पहुंच गए हैं।